ज़िन्दगी एक ऐसी चीज़ है जिसके बहुत सारे पहलू है जैसे- बचपना, पढाई, शादी, दोस्ती, रिश्ते नाते , समाज और न जाने क्या क्या , अधिकतर जिस पहलू का हम सबसे ज़्यादा ख्याल रखते है वो है समाज अर्थात् दुनियादारी ।
बहुत से ज्ञानियों ने समाज की बहुत सी परिभाषा दी है, किसी ने कहा है जो व्यक्ति समाज में ना रहे वो इंसान नही , किसी ने कहा है हम समाज से है और किसी ने कुछ किसी ने कुछ , और यह है भी सही अगर हम समाज में ना रहना चाहे तो ऐसा शायद ही मुमकिन है की वो ज़िंदा रह सके लेकिन अगर हम अपनी सभी बातों का फैसला समाज की ख़ुशी को देखते हुए करे तो हमारा खुश रहना मुश्किल है वो भी नहीं जी सकेगा ।
मेरे विचार से हम जो भी कार्य करे उसमे अपने मस्तिष्क के साथ साथ अपने हृदय को भी साझीदार बनाना ज़रूरी है , सिर्फ और सिर्फ यह सोचना भी मुर्खता का ही प्रमाण है की दुनियावाले क्या कहेंगे या बिरादरी वाले क्या कहेंगे, मैं यह नहीं कह रहा कि बिल्कुल भी दुनिया के बारे में न सोचे, मुझे लगता है कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ दुनियादारी का ही ध्यान नहीं रखना चाहिए बल्कि अपनी ख़ुशी का भी ख्याल रखना चाहिए क्योंकि ज़िन्दगी दुबारा न मिलेगी अब हम इस ज़िन्दगी को कितना जीते है कितने हिस्से जीते है यह हम पर निर्भर करता है अब जिंदगी के क्या हिस्से है पैदा होने से मरने तक किसी भी जीव की ज़िंदगी में बहुत से हिस्से होते है जैसे- बचपन, छात्र जीवन, जवानी, शादी, काम धंधा, धार्मिक कार्य, बच्चे पालना, अपने सपने पूरा करना, यह हिस्से कौन कैसे जीता है वो उस पर छोड़ देते है लेकिन एक हिस्सा है पढाई जिसपर परिवार और समाज उसपर नज़रे गड़ाए होता है।
पढाई के साथ साथ दुनियादारी कैसे ? अगर हमारे बेटे के अस्सी प्रतिशत नंबर न आये तो हम दुनिया को क्या मुंह दिखायगें, खान साहब क्या कहेंगे यह पढाई के साथ दुनियादारी पढ़ने वाला जरूरी समझे या न समझे लेकिन उसके माँ बाप जरूत समझते है । बहुत से अभिभावक तो ऐसे होते है जो अपने बच्चों को दुसरो के बच्चों से कॉम्पिटिशन करता है उसने बी सी ए में एडमिशन लिया तू बी टेक कर मुझे तो हंसी आती है ऐसे अभिभावको पर ।
यह बच्चे पर छोड़ देना चाहिए की वो किस क्षेत्र में भविष्य बनाना चाह रहा वो किस चीज़ मैं रूचि रखता है अभिभावको को कभी भी अपने सपने बच्चों पर नहीं थोपने चाहिए अगर बच्चा अपने सरंक्षक की बात मान कर वो करने भी लगता है तो उसका मस्तिष्क उसका भार नहीं सहन कर पाता फिर या तो पागल हो जाता है या मुर्ख बन जाता है मतलब आत्महत्या कर लेता है और अगर वो इस स्तिथि से निकल भी गया तो ज़िन्दगी में खुश नहीं रह पाता।
पढाई एक ऐसी चीज़ है जो बच्चे का भविष्य तय करती है अगर बच्चा डॉक्टर बनना चाह रहा है तो उसे वकालत करने पर क्यूं मजबूर किया जाये ।
ज़िंदगी बहुत कीमती होती है जो वक़्त गुज़र जाता है वो कभी लौटकर नहीं आता, अभिभावको को चाहिए की वह अपने बच्चों को ज़िन्दगी के तमाम पहलू जीने की आज़ादी दे देनी चाहिए एक हद के साथ । पढाई, पढाई के बाद नौकरी, शादी, बच्चे, बच्चों को पलना, फिर बच्चों की शादी, और फिर बूढ़े हो कर मर जाना सिर्फ यहाँ तक ही सीमित न करे, यह तब है जब ज़िंदा रहे यहाँ पहुँचने तक,अपने लिए ज़िन्दगी जी ही कहाँ, युवा वक़्त में लिया गया फैसला ही भविष्य को उस फैसले के अनुसार बना देता है।
ज़िन्दगी का हर पल जीने की कोशिश करनी चाहिए अपने हृदय की सुनकर मस्तिष्क की सुनकर न की लोगो की मुँह की सुनकर, हमारे आस पास जितने आदमी होते है वो सब अलग अलग विचार लिए होते है अगर लोगो के विचार में आ गए तो विमूढ़ होकर रह जाओगे । सबकी सुनो फिर सही फैसला करो ।
ज़िन्दगी पूरी इस्तेमाल करनी चाहिए बर्फ की सिल्ली की तरह जैसे बर्फ की सिल्ली होती है अगर उसे रखे तो वह थोड़ी कर कर के पिघलती जाती है चाहे उसे हम हाथ लगाये या न लगाये, जब बर्फ की सिल्ली पिघलनी ही है तो फिर इस्तेमाल करो , शर्बत बनाने मे, लस्सी बनने मे, पानी ठंडा करने मे । ज़िंदगी बर्बाद क्यों करे नशे करके, दिलो में नफरत रखके, एक दूसरे के खिलाफ साजिश रच कर, यह सब करना ऐसे है जैसे बर्फ की सिल्ली को फेंक देना ज़रुरत के बावज़ूद, बर्फ की सिल्ली जैसी तो है हमारी, ज़िन्दगी जियो या न जियो उम्र तो कम होती जा रही है । तो उम्र नफरत करके नहीं प्यार बाँट कर काटो ।
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