ग़ज़ल / जमाल हाशमी
ज़बू हाली में भी गाढ़ी कमाई करता रहता हूँ
मैं गैरों के लिए खुद को रज़ाई करता रहता हूँ
मरासिम टूटने का दिल में इतना ख़ौफ़ रहता है
सिलाई पर भी मैं अक्सर सिलाई करता रहता हूँ
हमेशा इसलिए चुभता हूँ दुनिया की निगाहों में
खिलाफ-ए-गुमरही मे लब कुशाई करता रहता हूँ
जवानी मे क़दम रखा है जब से मेरे बच्चों ने
दरो दीवार की छत की नपाई करता रहता हूँ
वफ़ाओ के जो बदले में मुझे दुनिया ने बख्शे है
मैं उन ज़ख्मों की अक्सर दर कुशाई करता रहता हूँ
मुझे अनमोल मोती और ज़मर्रुद मिलते रहते हैं,
दफीने के लिये दिल की खुदाई करता रहता हूँ।बदन रहता है मेरा इस लिये भी जख्म आलुदा,
मैं कीकर के दरख्तों की कटाई करता रहता हूँ।
5 Comments
दो शेर और है इसमें सर -----
ReplyDeleteमुझे अनमोल मोती और ज़मर्रुद मिलते रहते हैं,
दफीने के लिये दिल की खुदाई करता रहता हूँ।
बदन रहता है मेरा इस लिये भी जख्म आलुदा,
मैं कीकर के दरख्तों की कटाई करता रहता हूँ।
शुक्रिया फैमस भाई
Deleteकीकर के दरख्तों का जवाब नहीं
ग़ज़ल मुकम्मल करने के लिये
Deleteशुक्रिया फेमस खतौलवी साहब
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteशुक्रिया कामरान आदिल साहब
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