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"समाज सेवा" खिदमत ए ख़ल्क

हम समाज में रहते है उस समाज में जो हमारे पैदा होने से लेकर मौत तक साथ रहता है जब पैदा होते है है तो समाज ख़ुशी मनाते है , जब बीमार होते है तब समाज दुःख में शामिल होता है जब विवाह , जन्मदिन  आदि समारोह होते है तो हमारी ख़ुशी में शामिल होकर हमारी ख़ुशी को कई गुना बढ़ा देते है और जब मौत जैसे मातम होते है जो हर जीव को आती है तो ऐसे दुखो में शामिल होकर दुःख को कई गुना कम कर देते है ।
           अब अगर हम समाज में रहते हुए समाज सेवा न करे , किसी असहाय के काम न आये , किसी भूखे को खाना न खिलाये , किसी की मदद न करें तो हमारा समाज में रहने पर धिक्कार है हम बोझ है इस धरती पर हम जिस समाज में रहते है उसमे दोनों ही प्रकार के मनुष्य रहते है अच्छे भी बुरे भी , हमारी कोशिश होनी चाहिए की हम अच्छे बने ।
           समाज सेवा सभी धर्मों में सर्वोपरि है और किसी भी धर्म में यह नहीं लिखा की मज़लूमो , बेकसूरो की हत्या करो अगर किसी धर्म में लिखा भी है तो मैं ऐसे किसी भी धर्म को धर्म नहीं मानता , मैं यह भी मानता हूँ की सभी मनुष्य के विचार एक जैसे नहीं होते लेकिन समाज सेवा में एक ही होने चाहिए ।
               अगर हर मनुष्य का सिर्फ और सिर्फ समाज में शांति , सौहार्द और असहायों की सेवा मक़सद हो तो दुनिया देखना कितनी हसींन नज़र आने लगेगी हो सकता है हम समाज सेवा से दुनिया न बदल सके लेकिन किसी का भला करके आत्मसंतुष्ट तो हो सकते है किसी को ख़ुशी दे सकते है और किसी का दर्द कम कर सकते है । मशहूर शायर जनाब साहिर लुधियानवी साहब ने यूँ कहा -
                माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
                कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम

✒ आसिफ "कैफ़ी" सलमानी

       Written By -  Asif Kaifi Salmani


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