नज़्म - किसान
कहीं जवान कहीं पर किसान मारा गया
यहां तो जिसने भी खोली ज़बान मारा गया
वफ़ा के प्यार मोहब्बत के क्या मआनी है
गुलों पे लगता है कांटों की हुक्मरानी है
संभाली जिसने भी हक़ की कमान मारा गया
यहां तो जिसने भी खोली ज़बान मारा गया
किसान लोग मुसीबत उठा रहे हैं यहां
लुटेरे बैठ के कुर्सी पे खा रहे हैं यहां
ये लग रहा है कि अमनो अमान मारा गया
यहां तो जिसने भी खोली ज़बान मारा गया
जो ज़र था खा गएं बिरला अडानी अम्बानी
गरीब को तो मयस्सर नहीं है अब पानी
किसी ने चाहा अगर सायबान मारा गया
यहां तो जिसने भी खोली ज़बान मारा गया
अजीब शक्ल के कानून बन रहे हैं अब
सियासी लोग तो क़ारून बन रहे हैं अब
भरी गरीब ने ऊंची उड़ान मारा गया
यहां तो जिसने भी खोली ज़बान मारा गया
रचनाकार - आसिफ कैफ़ी
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