डर लगता है
मतलबी रिश्तों के
हुजूम से
ख़लती हैं कानों को
आवाज़ें
जो होती हैं
बे मक़सद बे मा'नी
मुझे नफ़रत है
ऐसे शोर से
जिसमें दब कर रहे जाती हैं
सदाऐं
दिल ए नाज़ुक की
मैं सुना चाहता हूँ
अधूरे ख़्वाबों की
चीख़
देरीना रस्तों की
चाप
ख़ामोश दीवारों का
दुःख
दरवाज़ों पे सिसकती
दस्तकें
बिस्तर की
सिलवटें
पंखें का
सुकूत
और अपनी.....धड़कने
बस
मैं तन्हाई पसन्द हूँ
🖋️ कामरान आदिल
मतलबी रिश्तों के
हुजूम से
ख़लती हैं कानों को
आवाज़ें
जो होती हैं
बे मक़सद बे मा'नी
मुझे नफ़रत है
ऐसे शोर से
जिसमें दब कर रहे जाती हैं
सदाऐं
दिल ए नाज़ुक की
मैं सुना चाहता हूँ
अधूरे ख़्वाबों की
चीख़
देरीना रस्तों की
चाप
ख़ामोश दीवारों का
दुःख
दरवाज़ों पे सिसकती
दस्तकें
बिस्तर की
सिलवटें
पंखें का
सुकूत
और अपनी.....धड़कने
बस
मैं तन्हाई पसन्द हूँ
🖋️ कामरान आदिल
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