मेरी गुरबत के इम्तेहां रख दो
हसरतें सब यहां वहां रख दो।
घर का बंटवारा बाद में करना
पहले मां बाप दरमियां रख दो।
तीर ओ तलवार दे दिये तुमने
खून भी जिस्म में रवां रख दो।
इतनी आज़ादी दो अमीर-ए-शहर
मेरे मुँह से मेरी ज़बां रख दो।
हौसले जिसके सारे टूट चुके
दरमियां मेरी दास्तां रख दो।
पंख परवाज को लगे हैं मेरी
अब ज़मीं पर ही आसमां रख दो।
खुद ही पहचान लेगा अपनापन
दर्द चाहे कहीं निहां रख दो।
देखा जाता नहीं बदलते उन्हें
मेरी आखों में अब धुआं रख दो।
उसकी खुश्बू कहां से लाओगे
चाहे सासों में गुलशितां रख दो।
मरने के बाद जिस्म मिट्टी हैं
मर्ज़ी है चाहे अब जहां रख दो।
आखों में डेरा अश्कों का है मेरी
कम से कम नाम शादमां रख दो।
तुम ज़मीं तो मुझे नहीं दोगे
हाँ मेरे सर पे आसमां रख दो।
वहशी दीवाना आशिक ओ पागल
नाम कोई भी जान ए जां रख दो।
मुझको ढूढेंगें मेरे बाद नवाब
इस ज़मीं पर मेरे निशां रख दो ।
✒️ नवाब मलिक
Subscribe Us On Youtube
0 Comments