जिस्म के दायरे में हूं शायद
मैं अभी रास्ते में हूं शायद
फैलना बू ए गुल की सूरत था
और मैं हाशिए में हूं शायद
जाने क्यों हर घड़ी ये लगता है
मैं कफ़ ए आईने में हूं शायद
जो निगाहों में है हवादिस की
मैं उसी क़ाफ़ले में हूं शायद
वो दुआ दे गये हैं जीने की
आख़री मरहले में हूं शायद
ढूंढ़ते हैं कई चिराग़ मुझे
और मैं अंधे कुएं में हूं शायद
✒️ जमाल हाशमी
मैं अभी रास्ते में हूं शायद
फैलना बू ए गुल की सूरत था
और मैं हाशिए में हूं शायद
जाने क्यों हर घड़ी ये लगता है
मैं कफ़ ए आईने में हूं शायद
जो निगाहों में है हवादिस की
मैं उसी क़ाफ़ले में हूं शायद
वो दुआ दे गये हैं जीने की
आख़री मरहले में हूं शायद
ढूंढ़ते हैं कई चिराग़ मुझे
और मैं अंधे कुएं में हूं शायद
✒️ जमाल हाशमी
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