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मेरे अंदर का शाइर कहाँ है - ग़ज़ल/जमाल हाशमी



मेरे अंदर का शाइर कहाँ है / ग़ज़ल


ज़ुल्म का बड़ गया सिलसिला है मेरे अंदर का शाइर कहां है
जिस  तरफ़  देखिए  कर्बला  है  मेरे अंदर का शाइर कहां है

जिनका शेवा है बस जी हुज़ूरी जिन की मशहूर है ला शऊरी
उन पे वा अब दर-ए-मैकदा है  मेरे अंदर का शाइर कहां है

अपने ही ख़ूं में तर हो रही है आदमीयत भी अब रो रही है
दर्द  ही  हो  गया ला  दवा  है  मेरे अंदर का शाइर कहां है

भाई का आज दुश्मन है भाई सहमी सहमी है सारी ख़ुदाई
हाकिम-ए-वक्त सोया पड़ा है  मेरे अंदर का शाइर कहां है

भाई चारा भी घायल पड़ा है दम भी सीने में घुटने लगा है
हर बशर आज सहमा हुआ है मेरे अंदर का शाइर कहां है


✒️ जमाल हाशमी                         
                 
                    Poet - Jamal Hashmi

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1 Comments

  1. वाह वाह, बेहतरीन ग़ज़ल
    एक एक शेर लाजवाब ...

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