बारिश में हूँ
जुलाई की पहली तेज़ बारिश है
मेरे हाथों में छाता है लेकिन फिर भी जानबूझकर भीग रहा हूँ,
बारिश को महसूस कर रहा हूँ
जैसे तिश्नगी की हद हो गई हो और फ़ौरन किसी ने पानी दे दिया हो,
ये बारिश मुझे वो ही पानी लग रहा है
"क्या मैं ख़ुमार-ए-इश्क़ में हूँ"
तन्हाई महसूस हो रही है,
नींद नहीं आ रही है, हिचकियाँ दम उखाड़ रही है
ऐसा लग रहा है कहीं कुछ ग़ुम हो गया है
"क्या मैं किसी हिज्र में हूँ"
बेपरवाह बारिश में बाहर निकल आया हूं
आसमान की तरफ मुँह कर लिया है
हाथों में बूंदे लेकर मुँह पर छीटें मार कर
बारिश को महसूस कर रहा हूँ
"क्या वस्ल की ख़ुमारी में हूँ"
कई घण्टे से बाहर बारिश हो रही है
मैंने एक कलम ली और डायरी खोली उसमें लिखने लगा हूँ और लिखते ही जा रहा हूँ
एक शेर से एक क़ताअ फिर मुक़म्मल ग़ज़ल लिख दी और फिर दूसरी भी लिखने की सोच रहा हूँ
"क्या दीवानगी में हूँ"
मैं इनमें से कोई एक हो सकता हूँ
अगर नहीं हूँ तो सोच रहा हूँ कि हो जाऊं
क्योंकि बारिश नेअमत है,
रहमत है और राहत है।
- आसिफ कैफ़ी सलमानी
तिश्नगी - प्यास
ख़ुमार-ए-इश्क़ - प्यार में ख़ुशी
हिज्र - वियोग
वस्ल की ख़ुमारी - मिलन की ख़ुशी
नेअमत - ईश्वर द्वारा दी गई कीमती चीज़
रहमत - ईश्वर का आशीर्वाद
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